चलो तुमसे भी छुपा लेंगे अब हम ख़ुद को,
मिला करोगे तुम अब एक खुशनुमा इंसाँ से ।
~हरीश
इख़्तिताम-ए-तमाशा-ए-ज़िंदगी वहाँ,
हो सुकून जहाँ या हो मौत का मकाँ ।
~हरीश
माना की मुझ में नफ़ासत नहीं तुम्हारी
अब यूँ भी ना समझो की नाचीज़ हैं हम
~ हरीश
बयाँ कर दे हाल-ए-दिल, कल का इंतज़ार ना कर,
शब-ए-कयामत है आज, अब फ़िर सहर ना होगी |
~ हरीश
इश्क़ में आशिक़ तभी लिखा करता है,
हमनशीं उसका जब जफ़ा करता है।
~हरीश
निकल आए हैं इन सड़कों पर फिर लोग जहां,
कुछ दिन पहले तक मौत नाचा करती थी।
~हरीश
हम भी अगर ए दिल सब जैसे होते,
शिकवे तुझे हमसे कुछ कम से होते ।
~हरीश
ज़िन्दगी चंद लम्हों की मोहताज बनके रह गई,
सहर फ़क़त शब का इंतजार बनके रह गई ।
मसरूफ़ियत में अक्सर दिन तो गुज़र जाता है,
पर रात यादों का वीरान बाज़ार बनके रह गई ।
कोई पढ़े भी मुझको तो किस कदर पढ़े,
ज़िन्दगी सुर्ख पन्नों की किताब बनके रह गई ।
करीब होने लगते हैं जिससे वो दूर हो जाता है,
मोहब्बत बस एक तरफा प्यार बनके रह गई ।
सब कुछ पाकर भी हर वक़्त बेकरारी है,
हर घड़ी बस चैन की तलाश बनके रह गई ।
न जाने क्या था जिसकी तलाश में निकले थे हम,
अब जो पहुंचे हैं मंज़िल पे तो कुछ नजर नहीं आता।
कुछ कमी थी तो दिल को इक आरज़ू तो थी,
अब सबकुछ है हासिल तो इसे कुछ नहीं भाता।
बैठे जो लिखने ख़त उसे, इज़हार-ए-मोहब्बत का,
हम लिखते रह गए ख़त, वो हो गया किसी और का।
~हरीश
उड़ते हुए आसमां से, देखा जब जहां को,
समझ आया कि कैसा, लगता होगा ख़ुदा को।
हज़ार लोग हैं, और लाख हैं ख्वाहिशें,
कैसे ही कोई सुन सकेगा, हर इक सदा को।
~हरीश
किस्मत जो बांटी ए खुदा तूने जहां में,
कहीं कतरा तो कहीं दरिया कर दिया।
~हरीश
ए रात ठहर जा, थम जा ज़रा,
रहने दे मुझे कुछ देर और यहीं
ये लम्हें जो यूं तो कल भी थे,
ये लम्हें जो कल मगर होंगे नहीं
ये हवा जो यूं तो है हर जगह,
ये हवा जो पर ऐसे चलेगी नहीं
ये बिस्तर, ये टूटा हुआ सा तकिया,
बगैर जिसके कभी में सोया नहीं
ये दीवारें तो शायद होंगी वहां भी,
वो मकां तो होगा, मगर घर नहीं
ए रात ठहर जा, थम जा ज़रा,
रहने दे मुझे कुछ देर और यहीं
~हरीश
जब ग़म होता है, तो बस ग़म होता है,
ना किसी का ज़्यादा, ना किसीे का कम होता है।
~हरीश
कुछ नहीं है महज़ लफ़्ज़ों का, फेर है शायरी,
ग़म की अंजुमन में, ख़ुशी का जाम है शायरी
सोच तक सिमटी रहे, वो तो फ़क़त बात है,
दिल चीर के जो निकलती है, वो है शायरी
पल में मुक़म्मल हो जाए, वो तो फ़क़त बात है,
मुसलसल संग ज़िन्दगी के, चलती है शायरी
सीधे ही समझा दें जो, वो तो फ़क़त बात है,
कह देते हैं हम फिर, समझता रहे ज़माना शायरी
कुछ नहीं है महज़ लफ़्ज़ों का, फेर है शायरी,
ग़म की अंजुमन में, ख़ुशी का जाम है शायरी
~हरीश
ग़ज़ल कहने-सुनने को सीने में दर्द चाहिए जनाब,
यूं हस्तें-खेलते दिलों से शायरी नहीं संभलती।
~हरीश
जो हुआ वो उधर, उस वक़्त ना होता,
ना जाने तब इधर, इस वक़्त क्या होता
ख़ुशी की शाम भी होती शायद,
ग़म का आलम भी होता
तेरे ग़म में शामिल मैं,
मेरी ख़ुशी में मयस्सर तू होता |
~हरीश
इस कदर कोहराम है ज़हन के पन्नों में
हर्फ़ बिखर जाते हैं अल्फ़ाज़ बनने से पहले ।
~हरीश
रात अजब है कमाल करती है,
जवाब नहीं हैं फ़िर भी सवाल करती है।
पूछती है मुझसे कि क्यूं तन्हा है?
ज़ख्मों पे नमक का छिड़काव करती है।
मालूम है इसे, कल बेवजह है फ़िर भी,
आंखे खोले सुबह का इंतज़ार करती है।
रात अजब है कमाल करती है,
जवाब नहीं हैं फ़िर भी सवाल करती है।
~हरीश